आप इस किताब को यहाँ क्लिक कर खरीद सकते हैं अतिधार्मिकता हमारे विचारों को अतिरेक से भर देती है। इसमें कोई दूसरे की जान ले लेता है तो कोई अपनी जान दे देता है। दोनों ही उदाहरण हम अपने चारों ओर देख रहे हैं। दिल्ली में जब एक ही परिवार के 11 लोग अपनी जान दे देते हैं, वो भी किसी विश्वास या धार्मिक आस्था के अनुष्ठान के तहत, तो ए भी निश्चित तौर पर अतिधार्मिक विचारों का अतिरेकी (extreme) रूपांतरण है। ये सीधे तौर पर एक मानसिक ब्याधि बन जाता है, लेकिन इसका आभास किसी को नहीं हो पाता, क्योंकि समाज मे पूजा करना या धार्मिक होना कोई बुराई नहीं माना जाता है ओर जब तक पता लगता है तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है जैसा कि उक्त घटना में हुआ लगता है। हमारे समाज में हम धर्म एवं आध्यात्म को एक ही मानने की भूल कर बैठते हैं। हम कोई भी धर्म, गुरु, या पंथ की शरण में आध्यात्मिक शांति के लिए ही जाते हैं। अगर देखा जाय तो विश्व के सभी धर्मों, विश्वासों, गुरुओं आदि का काम यही है कि वो हमारी आध्यात्मिकता को पोषित करें, लेकिन होता इसका उल्टा है। इन सभी जगहों पर अध्यात्मिकता के नाम पर धार्मिकता को बढ़ा...
Spiritual health is the fourth dimension of our health. Spirituality and the Spiritual Thought Process are unique to human beings, it is due to the millions of years of natural evolutionary mechanism which makes us human and put us on the top of animal kingdom.